BSEB Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 6 मृदा
Bihar Board Class 11 Geography मृदा Text Book Questions and Answers
(क) बहुवैकल्पिक प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
भारत में कौन-सी मृदा सबसे विस्तृत उपजाऊ है ………………………..
(क) जलोढ़
(ख) काली मृदा
(ग) लेटेराइट
(घ) वन मृदा
उत्तर:
(क) जलोढ़
प्रश्न 2.
किस मृदा को रेगुड़ मृदा भी कहते हैं ………………………
(क) नमकीन
(ख) काली
(ग) शुष्क
(ख) लेटेराइट
उत्तर:
(ग) शुष्क
प्रश्न 3.
मृदा की ऊपरी तह के उड़ जाने का मुख्य कारण ………………………..
(क) पवन अपरदन
(ख) अपक्षातान
(ग) जल अपरदन
(घ) कोई नहीं
उत्तर:
(ग) जल अपरदन
प्रश्न 4.
कृषिकृत भूमि में जल सिंचित क्षेत्र में खाई वन का क्या कारक है …………………………
(क) जिप्सम
(ख) अति-जल सिंचाई
(ग) अति पशुचारण
(घ) उर्वरक
उत्तर:
(ख) अति-जल सिंचाई
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए
प्रश्न 1.
मृदा क्या है?
उत्तर:
मृदा भू-पर्पटी की सबसे महत्त्वपूर्ण परत है। यह एक मूल्यवान संसाधन है। ‘मृदा शैल, मलवा और जैव सामग्री का सम्मिश्रण होती है जो पृथ्वी की सतह पर विकसित होते हैं। मृदा का विकास हजारों वर्ष में होता है।
प्रश्न 2.
मृदा निर्माण के प्रमुख उत्तरदायी कारक कौन-से हैं?
उत्तर:
मृदा निर्माण के प्रमुख उत्तरदायी कारक हैं-उच्चावच, जनक सामग्री, जलवायु, वनस्पति तथा अन्य जीव रूप और समय । इनके अतिरिक्त मानवीय क्रियाएँ भी पर्याप्त सीमा तक इसे प्रभावित करती है। मृदा के घटक खनिज कण, ह्यूमस, जल तथा वायु होते हैं।
प्रश्न 3.
मृदा परिच्छदिका के तीन संस्तरों के नामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
क’ संस्तर सबसे ऊपरी खण्ड होता है, जहाँ पौधों की वृद्धि के लिए अनिवार्य जैव पदार्थों का खनिज पदार्थ, पोषक तत्त्वों तथा जल से संयोग होता है । ‘ख’ संस्तर, ‘क’ संस्तर तथा ‘ग’ सस्तर के बीच संक्रमण खण्ड होता है जिसे नीचे व ऊपर दोनों से पदार्थ प्राप्त होते हैं। इसमें कुछ जैव पदार्थ होते हैं । तथापि खनिज पदार्थ का अपक्षय स्पष्ट नजर आता है। ‘ग’ संस्तर की रचना ढीली सामग्री से होती है। यह परत मृदा निर्माण की प्रक्रिया में प्रथम अवस्था होती है और अंततः ऊपर की दो परतें इसी से बनती हैं।
प्रश्न 4.
मृदा अवकर्षण क्या होता है?
उत्तर:
मृदा अवकर्षण को मृदा की उर्वरता के हास के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसमें मृदा का पोषण स्तर गिर जाता है और अपरदन तथा दुरुपयोग के कारण मृदा की गहराई कम हो जाती है। भारत में मृदा संसाधनों के क्षय का मुख्य कारक मृदा अवकर्षण हैं। मृदा अवकर्षण की दर भू-आकृति, पवनों की गति तथा वर्षा की मात्रा के अनुसार एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिन्न होती है।
प्रश्न 5.
खादर और बांगर में क्या अंतर है?
उत्तर:
खादर प्रतिवर्ष बाढ़ों के द्वारा निक्षेपित होने वाला नया जलोढ़क है, जो महीन गाद होने के कारण मृदा की उर्वरता बढ़ा देता है। बांगर पुराना जलोढ़क होता है जिसका जमाव दाइकृत मैदानों से दूर होता है।
(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 125 शब्दों में दीजिए
प्रश्न 1.
काली मृदा किन्हें कहते हैं ? इनके निर्माण तथा विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
काली मृदा दक्कन के पठार के अधिकतर भाग पर पाई जाती हैं। इसमें महाराष्ट्र के कुछ भाग, गुजरात, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु के कुछ भाग शामिल हैं। गोदावरी और कृष्णा नदियों के ऊपरी भागों और दक्कन के पठार के उत्तरी-पश्चिमी भाग में गहरी काली मृदा पाई जाती है। इन्हें ‘रेगूर’ तथा ‘कपास वाली काली मिट्टी’ भी कहा जाता है। आमतौर पर काली मृदाएँ, मृण्मय, गहरी और अपारगम्य होती हैं। ये मृदाएँ गीली होने पर फूल जाती हैं और चिपचिपी हो जाती हैं। सूखने पर ये सिकुड़ जाती हैं। इस प्रकार शुष्क ऋतु में इन मृदाओं में चौड़ी दरारें पड़ जाती हैं। इस समय ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे इनमें ‘स्वतः जुताई’ हो गई हो । नमी के धीमे अवशोषण और नमी के क्षय की इस विशेषता के कारण काली मृदा में एक लम्बी अवधि तक नमी बनी रहती है। इसके कारण फसलों को, विशेष रूप से वर्षाधीन फसलों को, शुष्क ऋतु में भी नमी मिलती रहती है और वे फलती-फूलती रहती हैं।
रासायनिक दृष्टि से काली मृदाओं में चूने, लौह, मैग्नीशिया तथा ऐलुमिना के तत्त्व काफी मात्रा में पाए जाते हैं। इनमें पोटाश की मात्रा भी पाई जाती है। लेकिन इनमें फॉसफोरस, नाइट्रोजन और जैव पदार्थों की कमी होती है। इस मृदा का रंग गाढ़े काले और स्लेटी रंग के बीच की विभिन्न आभाओं का होता है।
प्रश्न 2.
मृदा संरक्षण क्या होता है? मृदा संरक्षण के कुछ उपाय सुझाएँ।
उत्तर:
मृदा संरक्षण एक विधि है, जिसमें मिट्टी की उर्वरता बनाए रखी जाती है, मिट्टी के अपरदन और क्षय को रोका जाता है और मिट्टी की निम्नीकृत दशाओं को सुधारा जाता है। मृदा अपरदन मूल रूप से दोषपूर्ण पद्धतियों द्वारा बढ़ता है। किसी भी तर्कसंगत समाधान के अंतर्गत पहला काम ढालों की कृषि योग्य खुली भूमि पर खेती को रोकना है। 15 से 25 प्रतिशत ढाल प्रवणता वाली भूमि का उपयोग कृषि के लिए नहीं होना चाहिए। यदि ऐसी भूमि पर खेती करना जरूरी भी हो जाए तो इस पर सावधानी से सीढ़ीदार खेत बना लेना चाहिए।
भारत के विभिन्न भागों में, अति चराई और स्थानांतरी कृषि ने भूमि के प्राकृतिक आवरण को दुष्प्रभावित किया है, जिससे विस्तृत क्षेत्र अपरदन की चपेट में आ गए हैं। ग्रामवासियों को इनके दुष्परिणामों से अवगत करवा कर इन्हें नियमित और नियंत्रित करना चाहिए । समोच्च रेखीय सीढ़ीदार खेत बनाना, नियमित वानिकी, नियंत्रित चराई, आवरण फसलें उगाना, मिश्रित खेती तथा शस्यावर्तन आदि उपचार के कुछ ऐसे तरीके हैं जिनका उपयोग मृदा अपरदन को कम करने के लिए प्रायः किया जाता है।
प्रश्न 3.
आप यह कैसे जानेंगे कि कोई मृदा उर्वर है या नहीं ? प्राकृतिक रूप से निर्धारित उर्वरता और मानवकृत उर्वरता में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
महीन कणों वाली लाल और पीली मृदाएँ सामान्यतः उर्वर होती हैं। इसके विपरित मोटे कणों वाली उच्च भूमियों की मृदाएँ अनुर्वर होती हैं। इनमें सामान्यतः नाइट्रोजन, फॉसफोरस और ह्यूमस की कमी होती है। जलोढ़क मृदाओं में महीन गाद होती है जो मुदा की उर्वरता को बढ़ा देती हैं। इस प्रकार की मृदा में कैल्सियम संग्रथन अर्थात् कंकड़ पाए जाते हैं। काली मृदाओं में नमी के धीमे अवशोषण और नमी के क्षय की विशेषता के कारण लम्बी अवधि तक नमी बनी रहती है। इस कारण शुष्क ऋतु में भी फसलें फलती-फूलती रहती हैं। लैटेराइट मृदाओं में लोहे के ऑक्साइड और अल्यूमीनियम के यौगिक तथा पोटाश अधिक मात्रा में होते हैं। ह्यूमस की मात्रा कम होती है। इन मृदाओं में जैव पदार्थ, नाइट्रोजन, फॉस्फेट और कैल्सियम की कमी होती है।
शुष्क मृदाओं में ह्यूमस और जैव पदार्थ कम मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए ये मृदाएँ अनुर्वर हैं। लवण मृदाएँ ऊसर मृदाएँ भी कहलाती हैं। लवण मृदाओं में सोडियम, पोटेशियम और मैग्नीशियम का अनुपात अधिक होता है। अतः ये अनुर्वर होती हैं और इनमें किसी भी प्रकार की वनस्पति नहीं उगती। इनमें लवण की मात्रा अधिक होती है। पीटमय मृदाएँ उर्वर होती हैं। इस प्रकार की मृदा में ह्युमस और जैव तत्त्व पर्याप्त मात्रा में माजूद होते हैं। वन मृदाएँ अम्लीय और कम ह्यूमस वाली होती हैं। घाटियों में ये दुमटी और पांशु होती हैं तथा ऊपरी ढालों पर ये मोटे कणों वाली होती हैं। निचली घाटियों में पाई जाने वाली मृदाएँ उर्वर होती हैं। मृदा के घटक खनिज कण, ह्यूमस जल तथा वायु होते हैं। इनमें से प्रत्येक की वास्तविक मात्रा मृदा की उर्वरता को बढ़ाती है। लवण मृदा की उर्वरता को नष्ट कर देता है। रासायनिक उर्वरक भी मृदा के लिए हानिकारक है। लवणीय मृदा में जिप्सम डालने से मृदा की उर्वरता बढ़ी जाती है।
प्राकृतिक रूप से मृदा की उर्वरता पोषक तत्त्वों की विद्यमानता पर निर्भर करती हैं। मृदा में फॉस्फोरस, पोटैशियम, गंधक, मैग्नीशियम, नाइट्रोजन, बोरॉन ये सभी तत्त्व भिन्न-भिन्न मात्रा में होते हैं। मृदा की उत्पादकता कई भौतिक गुणों पर निर्भर करती है।
जब मृदा में विभिन्न तत्त्वों की कमी हो जाती है तो मानव निर्मित रसायन जैसे पोटाश, फॉस्फोरस, नाइट्रोजन, गंधक, मैग्नीशियम, बोरान आदि उचित मात्रा में मिलाकर मृदा की उर्वरता को बढ़ाया जाता है।
(घ) परियोजना कार्य (Project Work)
प्रश्न 1.
अपने क्षेत्र से मृदा के विभिन्न नमूने एकत्रित कीजिए तथा मृदा के प्रकारों पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।
उत्तर:
मृदा के नमूने स्वयं या अपने अध्यापक की सहायता से एकत्रित करें और मदा के प्रकारों पर एक रिपोट इस अध्याय को पढ़कर आप भली-भाँति तैयार कर सकते हैं।
प्रश्न 2.
भारत के रेखा मानचित्र पर मृदा के निम्नलिखित प्रकारों से ढके क्षेत्रों को चिह्नित कीजिए
- लाल मृदा
- लैटेराइट मृदा
- जलोढ़ मृदा।
उत्तर:
चित्र 6.1 देखें इसमें भारत के मानचित्र पर उपर्युक्त पूछी गई सभी मृदाओं का विवरण दिया गया है।
Bihar Board Class 11 Geography मृदा Additional Important Questions and Answers
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
उत्तरी भारत में पाई जाने वाली जलोढ़ मिट्टी की दो मुख्य किस्में लिखें।
उत्तर:
खादर तथा बागर मिट्टी।
प्रश्न 3.
खादर तथा बांगर मिट्टी के दो स्थानीय नाम लिखें।
उत्तर:
खादर मिट्टी-बैठ, बांगर मिट्टी-धाया।
प्रश्न 4.
तीन क्षेत्रों के नाम बतायें जहाँ पर खादर मिट्टी पाई जाती है।
उत्तर:
सतलुज बेसिन, गंगा का मैदान, यमुना बेसिन।
प्रश्न 5.
जलोढ़ मिट्टी में उत्पादित होने वाली दो खाद्य पदार्थों के नाम लिखें।
उत्तर:
गेहूँ, चावल।
प्रश्न 6.
पश्चिम बंगाल की जलोढ़ मिट्टी सबसे अधिक किस फसल के लिए उपयोगी है?
उत्तर:
पटसन के लिए।
प्रश्न 7.
मृदा महत्त्वपूर्ण क्यों है?
उत्तर:
यह सभी जीवित वस्तुओं के लिए भोजन उत्पादन करती है।
प्रश्न 8.
मिट्टी में पाये जाने वाले मुख्य आवश्यक तत्त्व लिखें।
उत्तर:
सिलिका, चीका तथा ह्यूमस।
प्रश्न 9.
मिट्टी में चीका का क्या कार्य है?
उत्तर:
यह जल को सोख लेती है।
प्रश्न 10.
मृदा की तीन परतों के नाम लिखें।
उत्तर:
- A – स्तर
- B – स्तर
- c – स्तर
प्रश्न 11.
मृदा की परिभाषा दें।
उत्तर:
यह असंगठित पदार्थों की पतली परत होती है।
प्रश्न 12.
उन तत्त्वों के नाम बतायें जिन पर मृदा की बनावट निर्भर करती है?
उत्तर:
- मूल पदार्थ
- धरातल
- जलवायु
प्रश्न 13.
भारत में मृदा के तीन व्यापक प्रादेशिक भागों के नाम लिखें।
उत्तर:
- प्रायद्वीप की मिट्टियाँ
- उत्तरी मैदान की मिट्टियाँ
- हिमालय की मिट्टियाँ
प्रश्न 14.
बनावट के आधार पर मृदा की तीन किस्में लिखें।
उत्तर:
- रेतीली मिट्टियाँ
- चीका मिट्टी
- दोमट मिट्टी
प्रश्न 15.
भारत में पाई जाने वाली अधिकतर व्यापक मिट्टी का नाम लिखें।
उत्तर:
जलोढ़ मिट्टी।
प्रश्न 16.
लैटेराइट मिट्टी की दो किस्में लिखें।
उत्तर:
उच्च मैदान लैटेराइट मिट्टी तथा निम्न मैदान लैटेराइट मिट्टी।
प्रश्न 17.
उन तीन राज्यों के नाम लिखें जहाँ पर लैटेराइट मिट्टी पाई जाती है?
उत्तर:
आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु तथा उड़ीसा।
प्रश्न 18.
लैटेराइट मिट्टी किस फसल के लिए सबसे अधिक उपयोगी है?
उत्तर:
बागानी फसल लगाने के लिए।
प्रश्न 19.
मरुस्थलीय मिट्टी किस प्रदेश में पाई जाती है?
उत्तर:
शुष्क मरुस्थल।
प्रश्न 20.
भारत के किस क्षेत्र में मरुस्थलीय मिट्टी पाई जाती है?
उत्तर:
थार मरुस्थल (राजस्थान का सिंध)।
प्रश्न 21.
मरुस्थलीय मिट्टी में उपज का क्या कारण है.?
उत्तर:
सिंचाई।
प्रश्न 22.
रेतीले मरुस्थल में पाई जाने वाली मिट्टी के दो प्रकार लिखें।
उत्तर:
तेजाबी तथा नमकीन।
प्रश्न 23.
मदा किसे कहते हैं?
उत्तर:
मिट्टी भूतल की ऊपरी सतह का आवरण है। भू-पृष्ठ पर मिलने वाले असंगठित पदार्थ ऊपरी परत को मृदा कहते हैं।
प्रश्न 24.
दक्कन पठार के छोर पर कौन-सी मिट्टी मिलती है?
उत्तर:
लाल मिट्टी।
प्रश्न 25.
कौन-सी मृदा प्रायद्वीपीय भारत में पाई जाती है?
उत्तर:
लाल मिट्टी।
प्रश्न 26.
उन दो राज्यों के नाम बतायें जहाँ पर लाल मिट्टी अधिकतर पाई जाती है।
उत्तर:
तमिलनाडु तथा छत्तीसगढ़।
प्रश्न 27.
उन तीन रंगों के नाम बतायें जिनसे लाल मिट्टी का निर्माण होता है।
उत्तर:
भूरा, चाकलेट तथा पीला।
प्रश्न 28.
रेगुड़ मिट्टी का रंग बताओ।
उत्तर:
काला।
प्रश्न 29.
उन दो राज्यों के नाम लिखें जहाँ पर काली मिट्टी पाई जाती है?
उत्तर:
महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश।
प्रश्न 30.
काली मिट्टी के दो अन्य नाम लिखें।
उत्तर:
कपास मिट्टी तथा रेगुड़ मिट्टी।
प्रश्न 31.
काली मिट्टी का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर:
दक्कन ट्रैप के ज्वालामुखी चट्टानों के लावा द्वारा।
प्रश्न 32.
एक फसल का नाम लिखें जिसके लिये काली मिट्टी बहुत उपयोगी है।
उत्तर:
कपास।
प्रश्न 33.
किस प्रकार की जलवायु में लेटेराइट मिट्टी का निर्माण होता है?
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय मानसून जलवायु।
प्रश्न 34.
मृदा के तीन संस्तरों के नामों का उल्लेख कीजिए। उत्तर:A स्तर, B स्तर, C स्तर
प्रश्न 35.
मृदा अपरदन किसे कहते हैं?
उत्तर:
भू-तल की ऊपरी सतह के उपजाऊ मिट्टी का उड़ जाना या बहना मृदा अपरदन कहलाता है।
प्रश्न 36.
बीहड़ किसे कहते हैं?
उत्तर:
अवनालिका अपरदन द्वारा बने गड्ढों को बीहड़ कहते हैं।
प्रश्न 37.
मृदा कैसे बनती है?
उत्तर:
मृदा का निर्माण आधार चट्टानों के पदार्थों तथा वनस्पति के सहयोग से होता है। किसी प्रदेश में यांत्रिक तथा रासायनिक अपक्षय द्वारा मूल चट्टानों के टूटने पर मृदा का निर्माण होता है। इसमें वनस्पति के गले-सड़े अंश मिलने से मृदा का विकास होता है।
प्रश्न 38.
मृदा निर्माण के प्रमुख कारकों के नाम बताएँ।
उत्तर:
- मूल पदार्थ
- उच्चावच
- जलवायु
- प्राकृतिक वनस्पति
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
मृदा का मूल पदार्थ क्या है?
उत्तर:
आधार चट्टानों के रासायनिक तथा यांत्रिक अपक्षरण से प्राप्त होने वाले पदार्थों को मृदा का मूल पदार्थ कहा जाता है। इन सभी पदार्थों से मृदा का निर्माण होता है। मृदा का रंग, उपजाऊपन आदि मूल पदार्थों पर निर्भर करता है। लावा चट्टानों से बनने वाली मृदा का रंग काला होता है।
प्रश्न 2.
पर्यावरण के छः तत्त्वों के नाम बताइए जो मृदा जनन की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उत्तर:
मृदा जनन एक जटिल प्रक्रिया है जिसके द्वारा विशेष प्राकृतिक परिस्थितियों में मृदा का निर्माण होता है। वातावरण के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक तत्त्वों के योग से इस प्रक्रिया द्वारा मृदा का निर्माण होता है। विभिन्न प्रकार की जलवायु, चट्टानों, जीव-जन्तुओं तथा वनस्पति के क्षेत्र से प्राप्त पदार्थों के इकट्ठा होने से मृदा का निर्माण होता है। धरातल तथा भूमि की ढाल भी मृदा जनन पर प्रभाव डालते हैं।
प्रश्न 3.
जलोढ़ मृदा की विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
जलोढ़ मृदा की विशेषताएं –
- इसका निक्षेपण मुख्यतः नदी द्वारा होता है।
- इसका विस्तार नदी बेसिन तथा मैदानों तक सीमित होता है।
- यह अत्यधिक उपजाऊ मृदा होती है।
- इसमें बारीक कणों वाली मृदा पाई जाती है।
- इसमें काफी मात्रा में पोटाश पाया जाता है, परंतु फॉस्फोरस की कमी होती है।
- यह मृदा बहुत गहरी होती है।
प्रश्न 4.
भारत में उपलब्ध मिट्टी के प्रकारों में प्रादेशिक विभिन्यता के क्या कारण हैं?
उत्तर:
भारत की मिट्टियों में पाई जाने वाली प्रादेशिक विभिन्नता निम्नलिखित घटकों पर निर्भर करती है –
- शैल-समूह,
- उच्चावच के धरातलीय लक्षण
- ढाल का रूप
- जलवायु तथा प्राकृतिक वनस्पति
- पशु तथा कीड़े-मकोड़े।
प्रश्न 5.
पठारों तथा मैदानों की मिट्टी में क्या अंतर है?
उत्तर:
पठारों तथा मैदानों की मिट्टी में मुख्य अंतर मूल पदार्थों में पाया जाता है। पठारों में आधार चट्टानें कठोर होती हैं। इसकी मिट्टी में मूल पदार्थों की प्राप्ति इन चट्टानों से होती है। यह मिट्टी मोटे कणों वाली तथा कम उपजाऊ होती है। मैदानों में मिट्टी का निर्माण नदियों के निक्षेपण कार्य से होता है। मैदानों में प्रायः जलोढ़ मिट्री मिलती है। नदी में प्रत्येक बाढ़ के कारण महीन सिल्ट (Silt) तथा मृतिका (clay) का निक्षेप होता रहता है।
प्रश्न 6.
चट्टानों में जंग लगने से कौन-सी मिट्टी का निर्माण होता है? भारत में इस मिट्टी के तीन प्रमुख लक्षण बताओ।
उत्तर:
इस क्रिया से लाल मिट्टी का निर्माण होता है –
1. विस्तार (Extent) – भारत की सब मिट्टियों में से लाल मिट्टी विस्तार सबसे अधिक है। यह मिट्टी लगभग 8 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पाई जाती है। दक्षिण में तमिलनाडु कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, छोटा नागपुर तथा प्रायद्वीप पठार के बाहरी भागों में लाल मिट्टी का विस्तार मिलता है।
2. विशेषताएँ (Characteristics) – इस मिट्टी का निर्माण प्रायद्वीप के आधारभूत आग्नेय चट्टानों, ग्रेनाइट तथा नीस चट्टानों की टूट-फूट से हुआ है। इस मिट्टी का रंग लौहयुक्त चट्टानों में ऑक्सीकरण (Oxidiation) की क्रिया से लाल हो जाता है।
वर्षा के कारण ह्यूमस नष्ट हो जाता है तथा आयरन ऑक्साइड ऊपरी सतह पर आ जाती है। इस मिट्टी में लोहा और एल्यूमीनियम की अधिकता होती है, परंतु नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की कमी होती है। यह मिट्टी कम गहरी तथा कम उपजाऊ होती है। इस मिट्टी में ज्वार, बाजरा, कपास, दालें, तम्बाकू की कृषि होती है।
प्रश्न 7.
मृदा क्या है? इसका निर्माण कैसे होता है?
उत्तर:
भू-पृष्ठ (Crust) पर मिलने वाले असंगठित पदार्थों की ऊपरी परत को मृदा कहते हैं। इस परत की मोटाई कुछ सेमी से लेकर कई मीटर तक हो सकती है। इसमें कई तत्त्व जैसे मिट्टी के बारीक कण, ह्यूमस, खनिज तथा जीवाणु मिले होते हैं। इन तत्त्वों के कारण इसमें कई परतें होती हैं। मृदा का निर्माण आधार चट्टानों के मूल पदार्थों तथा वनस्पति के सहयोग से होता है। किसी प्रदेश में यांत्रिक तथा रासायनिक ऋतु अपक्षय द्वारा मूल चट्टानों के टूटने पर मिट्टी का निर्माण आरम्भ होता है।
इसमें वनस्पति के गले-सड़े अंश के मिलने से कोई भौतिक तथा रासायनिक कारकों के सहयोग से मृदा का पूर्ण विकास होता है। इस प्रकार मृदा की परिभाषा है, “Soil is the end product of the physical, chemical, biological and cultural fctors which act and react together.”
प्रश्न 8.
मृदा जनन की प्रक्रिया क्या है?
उत्तर:
मृदा जनन एक जटिल प्रक्रिया है जिसके द्वारा विशेष प्राकृतिक परिस्थितियों में मृदा का निर्माण होता है। वातावरण के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक तत्त्वों के योग से इस प्रक्रिया द्वारा मृदा का निर्माण होता है। विभिन्न प्रकार की जलवायु चट्टानों, जीव-जन्तुओं तथा वनस्पति के क्षेत्र से प्राप्त पदार्थों के इकट्ठा होने से मृदा का निर्माण होता है।
प्रश्न 9.
दक्षिणी पठार में पाई जाने वाली मृदा का लाल रंग क्यों है ?
उत्तर:
दक्षिणी पठार के बाह्य प्रदेशों में लाल मिट्टी का अधिकतर विस्तार है। इस मिट्टी का मूल पदार्थ पठारी प्रदेश के पुराने क्रिस्टलीय तथा रूपान्तरित चट्टानों से प्राप्त होता है। इनमें ग्रेनाइट, नाईस तथा शिल्ट की चट्टानों का विस्तार है। इन चट्टानों में लोहा तथा मैग्नीशियम की अधिक मात्रा पाई जाती है। उष्ण कटिबंधीय जलवायु जलीकरण की क्रिया के कारण आयरन-ऑक्साइड द्वारा इस मिट्टी का रंग लाल हो जाता है।
प्रश्न 10.
वनस्पति जाति और वनस्पति में क्या अंतर है?
उत्तर:
वनस्पति जाति और वनस्पति में अंतर –
प्रश्न 11.
वनस्पति और वन में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
वनस्पति और वन में अंतर –
प्रश्न 12.
समोच्च रेखा बंधन किसे कहते हैं? मृदा को विनाश से बचाने के लिए इसका किस प्रकार प्रयोग कर सकते हैं?
उत्तर:
समोच्च रेखा बंधन (Contour Bunding) – पर्वतीय ढलानों पर सम ऊँचाई-की रेखा के साथ-साथ सीढ़ीदार खेत बनाए जाते हैं ताकि मिट्टी के कटाव को रोका जा सके। ऐसे प्रदेश में खड़ी ढाल वाले खेतों में समान ऊँचाई की रेखा के साथ बाँध या ढाल बनाई जाती है। ऐसे बाँध को समोच्च रेखा बंधन कहते हैं। इससे वर्षा के जल को रोक कर मृदा अपरदन से बचाया जा सकता है। इससे वर्षा के जल को नियंत्रित करके बहते हुए पानी द्वारा मृदा अपरदन को कम किया जा सकता है।
प्रश्न 13.
मृदा की उर्वरा शक्ति को विकसित करने के लिए कौन-कौन से उपाय करने चाहिए?
उत्तर:
मृदा की उर्वरा शक्ति का विकास करने के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए –
- मृदा अपरदन को रोकने का उपाय होना चाहिए।
- मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनाए रखने के लिए उर्वरकों और खादों का प्रयोग करना चाहिए।
- फसलों के हरे-फेर की प्रणाली का प्रयोग करना चाहिए।
- कृषि की वैज्ञानिक विधियों को अपनाना चाहिए।
- मिट्टी के उपजाऊ तत्त्वों का संरक्षण करके रासायनिक तत्त्वों को मिलाना चाहिए।
प्रश्न 14.
किसी प्रदेश के आर्थिक विकास में मृदा की विशेषता किस प्रकार महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है? इसकी व्याख्या करने के लिए दो उदाहरण बताइए।
उत्तर:
मृदा मानव के लिए बहुत मूल्यवान प्राकृतिक सम्पदा है। मिट्टी पर बहुत-सी मानवीय क्रियाएँ आधारित हैं। मिट्टी पर कृषि, पशुपालन तथा वनस्पति जीवन निर्भर करता है। किसी प्रदेश का आर्थिक विकास मिट्टी की उर्वरी शक्ति पर निर्भर करता है। कई देशों की कृषि अर्थव्यवस्था मिट्टी की उर्वरा शक्ति पर निर्भर करती है। संसार के प्रत्येक भाग में जनसंख्या का एक बड़ा भाग भोजन की पूर्ति के लिए मिट्टी पर निर्भर करता है।
अनुपजाऊ क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व तथा लोगों का जीवन-स्तर दोनों ही निम्न होते हैं। उदाहरण के लिए पश्चिमी बंगाल के डेल्टाई प्रदेश तथा केरल तट जलोढ़ मिट्टी से बने उपजाऊ क्षेत्र हैं। यहाँ उन्नत कृषि का विकास हुआ है। यह प्रदेश भारत में सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व वाला प्रदेश है। दूसरी ओर तेलंगाना में मोटे कणों वाली मिट्टी मिलती है तथा राजस्थान के शुष्क प्रदेश में रेतीली मिट्टी कृषि के अनुकूल नहीं है। इन प्रदेशों में विरल जनसंख्या। पाई जाती है।
प्रश्न 15.
मुदा की उर्वरता समाप्ति के तीन कारण बताइए।
उत्तर:
मृदा एक मूल्यावान प्राकृतिक संसाधन है। अधिक गहरी तथा उपजाऊ मिट्टी वाले प्रदेशों में कृषि का अधिक विकास होता है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति के हास के निम्नलिखित कारण हैं
- कृषि भूमि पर निरंतर कृषि करते रहने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति धीरे-धीरे नष्ट होने लगती है। मृदा को उर्वरा शक्ति प्राप्त करने का पूरा समय नहीं मिलता।
- दोषपूर्ण कृषि पद्धतियों के कारण मृदा की उर्वरा शक्ति समाप्त होने लगती है। स्थानान्तरी कृषि के कारण मृदा के उपजाऊ तत्त्वों का नाश होने लगती है। प्रतिवर्ष एक ही
- फसल बोने से मृदा में विशिष्ट प्रकार के खनिज कम होने लगते हैं।
- वायु तथा जल अपरदन से मृदा की उर्वरता समाप्त होती रहती है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
मृदा अपरदन किसे कहते हैं ? इसके क्या कारण हैं ? मानव ने मृदा अपरदन से बचाव के कौन-कौन से तरीके अपनाए हैं?
उत्तर:
मृदा अपरदन (Soil Erosion) – भूतल की ऊपरी सतह से उपजाऊ मिट्टी का उड़ जाना या बह जाना मृदा अपरदन कहलाता है। भूतल की मिट्टी धीरे-धीरे अपना स्थान छोड़ती रहती है जिससे यह कृषि के अयोग्य हो जाती है।
मृदा अपरदन के प्रकार (Types of Soil Erosion) – मृदा अपरदन तीन प्रकार से होता है-:
- धरातलीय कटाव (Sheet Erosion)
- नालीदार कटाव (Guly Erosion)
- वायु द्वारा कटाव (Wind Erosion)
मृदा अपरदन के कारण (Causes of Soil Erosion) –
- मूसलाधार वर्षा (Torrential Rain) – सर्वती प्रदेशों की तीव्र ढलानों पर मूसलधार वर्षा का जल मिट्टी की परत बहा कर ले जाता है। इससे यमुना घाटी में उत्खात भूमि की रचना
- वनों की कटाई (Deforestation) – वनों के अन्धाधुन्ध कटाव से मृदा अपरदन बढ़ जाता है। जैसे-पंजाब में शिवालिक पहाड़ियों पर तथा मैदानी भाग में चो (Chos) द्वारा मृदा अपरदन एक गम्भीर समस्या है।
- स्थानान्तरी कृषि (Shifting Agriculture) – वनों को जलाकर कृषि के लिए प्राप्त करने की प्रथा से झुमिंग (Jhumming) से उत्तर:पूर्वी भारत में मृदा अपरदन होता है।
- नर्म मिट्टी (Soft Soils) – कई प्रदेशों में नर्म मिट्टी के कारण मिट्टी की परत जाती है।
- अनियंत्रित पशु चारण (Uncontrolled Cattle Grazing) – पर्वतीय ढलानों पर चरागाहों में अनियंत्रित पशुचारण से मिट्टी के कण ढीले होकर बह जाते हैं।
- धूल भरी आंधियाँ (Dust Strons) – मरुस्थलों के निकटवर्ती प्रदेश में तेज धूल भरी आधियों के कारण मिट्टी परत का अपरदन होता है।
मृदा अपरदन रोकने के उपाय (Methods to Check Soil Erosion) – मिट्टी के उपजाऊपन को कायम रखने के लिए मिट्टी का संरक्षण आवश्यक है। मृदा अपरदन रोकने के लिए कई प्रकार का परत अपरदन होता है।
- वृक्षारोपण (Afforestation) – पर्वतीय ढलानों पर मिट्टी को संगठित रखने के लिए वृक्ष लगाए जाते हैं। नदियों के ऊपरी भागों में वन क्षेत्रों का विस्तार करके मृदा अपरदन को रोका जा सकता है। इसी प्रकार राजस्थान मरुस्थल की सीमाओं पर वन लगाकर वायु द्वारा अपरदन रोकने के लिए उपाय किए गए हैं।
- नियंत्रित पशुचारण (Controlled Grazing) – ढलानों पर चरागाहों में बे-रोक-टोक पशुचारण को रोका जाए ताकि घास को फिर से उगने और बढ़ने का समय मिल सके।
- सीढ़ीनुमा कृषि (Terraced Agriculture) – पर्वतीय ढलानों पर सम ऊँचाई की रेखा के साथ सीढ़ीदार खेत बनाकर वर्षा के जल को रोक कर मृदा अपरदन को रोका जा सकता है।
- बाँध बनाना (River Dams) – नदियों के ऊपरी भागों पर बाँध बनाकर बाढ़ नियंत्रण द्वारा मृदा अपरदन को रोका जा सकता है।
- अन्य उपाय – भूमि को पवन दिशा के समकोण पर जोतना चाहिए जिससे पवन द्वारा मिट्टी कटाव कम हो सके। स्थानान्तरी कृषि को रोका जाए। वायु की गति को कम करने के
- लिए वृक्ष लगा कर वायु रोक (Wind Break) – क्षेत्र बनाना चाहिए। फसलों के हेर-फेर तथा भूमि को परती छोड़ देने से मृदा अपरदन कम किया जा सकता है।
प्रश्न 2.
मृदा निर्माण के मुख्य घटकों के प्रभाव का वर्णन करों।
उत्तर:
मृदा निर्माण कई भौतिक तथा रासायनिक तत्त्वों पर निर्भर करता है। इन तत्त्वों के कारण मृदा प्रकारों के वितरण में भिन्नता पाई जाती है। ये तत्त्व स्वतंत्र रूप से अलग से नहीं बल्कि एक दूसरे के सहयोग से काम करते हैं।
1. मूल पदार्थ – मृदा निर्माण करने वाले पदार्थ की प्राप्ति आधार चट्टानों से होती है। प्रायः पठारों की मिट्टी का सम्बन्ध आधार चट्टानों से होता है। मैदानी भागों में मृदा निर्माण का मूल पदार्थ नदियों द्वारा जमा किए जाते हैं। नदियों में बाढ़ के कारण प्रत्येक वर्ष मिट्टी की नई परत बिछ जाती है।
2. उचावच – किसी प्रदेश का उच्चावच तथा ढाल मृदा निर्माण पर कई प्रकार से प्रभाव डालता है। मैदानी भागों में गहरी मिट्टी मिलती है जबकि खड़ी ढाल वाले प्रदेशों में कम गहरी मिट्टी का आवरण होता है। पठारों पर भी मिट्टी की परत कम गहरी होती है। तेज ढाल वाले क्षेत्रों में अपरदन के कारण मिट्टी की ऊपरी परत बह जाती है। इस प्रकार किसी प्रदेश के धरातल तथा ढाल के अनुसार जल प्रवाह की मात्रा मृदा निर्माण को प्रभावित करती है।
3. जलवायु – वर्षा, तापमान तथा पवनें किसी प्रदेश में मृदा निर्माण पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। जलवायु के अनुसार सूक्ष्म जीव तथा प्राकृतिक वनस्पति भी मृदा पर प्रभाव डालते हैं। शुष्क प्रदेशों में वायु मिट्टी के ऊपी परत को उड़ा ले जाती है। अधिक वर्षा वाले प्रदेशों में मिट्टी कटाव अधिक होता है।
4. प्राकृतिक वनस्पति – किसी प्रदेश में मिट्टी का विकास प्राकृतिक वनस्पति की वृद्धि के साथ ही आरम्भ होता है। वनस्पति के गले-सड़े अंश के कारण मिट्टी में हमस की मात्रा बढ़ जाती है जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। इसी कारण घास के मैदानों में उपजाऊ मिट्टी का निर्माण होता है। भारत के विभिन्न प्रदेशों में मृदा तथा वनस्पति के प्रकारों में गहरा सम्बन्ध पाया जाता है।
प्रश्न 3.
भारत में मृदा संरक्षण पर एक निबंध लिखें।
उत्तर:
मृदा संरक्षण-यदि मृदा अपरदन और मृदाक्षय मानव द्वारा किया जाता है, तो स्पष्टतः मानवों द्वारा ही इसे रोका भी जा सकता है। मृदा संरक्षण एक विधि है, जिसमें मिट्टी की उर्वरता बनाए रखी जाती है, मृदा अपरदन और क्षय को रोका जाता है और मिट्टी की अपक्षरित दशाओं को सुधारा जाता है। मृदा अपरदन वास्तव में मनुष्यकृत समस्या है।
1. किसी भी तर्कसंगत समाधान में पहला काम ढालों की कृषि योग्य खुली भूमि पर खेती को रोकना है। 15 से 25 प्रतिशत ढाल वाली भूमि का उपयोग कृपि के लिए नहीं होना चाहिए। यदि ऐसी भूमि पर खेती करना जरूरी हो जाए, तो इस पर सावधानी से सीढ़ीदार खेत बना लेना चाहिए।
2. भारत के विभिन्न भागों में, अति चराई और झूम कृषि ने भूमि के प्राकृतिक आवरण को दुष्प्रभावित किया है। इस कारण विस्तृत क्षेत्र अपरदन की चपेट में आ गए हैं। ग्रामवासियों को इनके दुष्परिणामों से अवगत करवा कर इन्हें (अति चराई और झूम कृषि) नियमित और नियंत्रित करना चाहिए।
3. समोच्च रेखा के अनुसार मेड़बंदी, समोच्च रेखीय सीढ़ीदार खेती बनाना, नियमित वानिकी, नियंत्रित चराई, वरणात्मक खरतपवार नाशन, आवरण फसलें उगाना, मिश्रित खेती तथा शस्यावर्तन, उपचार के कुछ ऐसे तरीके हैं, जिनका उपयोग मृदा अपरदन को कम करने के लिए प्रायः किया जाता है।
4. वनालिका अपरदन को रोकने तथा उनके बनने पर नियंत्रण के प्रयत्न किए जाने चाहिए । अंगुल्याकार अवनलिकाओं को सीढ़ीदार खेत बनाकर खत्म किया जा सकता है। अवनलिकाओं के शीर्ष की ओर के विकास को नियंत्रित करने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। इस कार्य को अवनलिकाओं को बंद करके. सीढीदार खेत बनाकर या आवरण वनस्पति का रोपण करके किया जा सकता है।
5. मरुस्थलीय और अर्द्ध-मरुस्थलीय क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि पर बालू के टीलों के प्रसार को वनों की रक्षक मेखला बनाकर रोकना चाहिए। कृषि के अयोग्य भूमि को चराई के लिए चरागाहों में बदल देना चाहिए। बालू के टीलों को स्थिर करने के उपाय भी अपनाए जाने चाहिए।
मृदा संरक्षण के कुछ महत्वपूर्ण और सुविज्ञात उपाय नीचे दिए गए हैं
वैज्ञानिक भूमि उपयोग अर्थात् भूमि का केवल उसी उद्देश्य के लिए उपयोग, जिसके लिए यह सबसे अधिक उपयुक्त है। वैज्ञानिक शस्यावर्तन। समाच्चरेखीय जुताई और मेड़बंदी। वनरोपण, विशेष रूप से नदी द्रोणियों के ऊपरी भागों में। आर्द्र-प्रदेशों में अवनालिका अपरदन और मरुस्थलीय और अर्द्ध-मरुस्थलीय प्रदेशों में । पवन-अपरदन रोकने के लिए अवरोधों का निर्माण। जैव खादों का अधिकाधिक उपयोग । बाढ़ सिंचाई के स्थान पर सिंचाई की फुहारा और टपकन विधियों का उपयोग।
प्रश्न 4.
विश्व की मिट्टियों के मुख्य प्रकार बताइये और इनमें से किसी एक के विवरण एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विश्व में पायी जाने वाली मिट्टियों को छः प्रमुख वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।
- जलोढ़ या कॉप मिट्टी
- काली मिट्टी
- लाल मिट्टी
- लैटेराइट मिट्टी
- मरुस्थलीय मिट्टी
- पर्वतीय मिट्टी
जलोढ़ एवं काँप मिट्टी (Alluvial Soil) – जलोढ़ एवं काँप मिट्टी का निर्माण नदियों द्वारा लाये गये अवसाद के निक्षेप से हुआ है। यह मिट्टी भारत के विस्तृत मैदानी भाग एवं प्रायद्वीपीय पठार के तटीय मैदानों में मिलती है। यह लगभग 15 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है। कृषि की दृष्टि से यह मिट्टी सर्वाधिक उपजाऊ तथा महत्त्वपूर्ण है। उत्तर भारत के मैदान में इसका क्षेत्रफल लगभग 9 लाख वर्ग किमी. है। कृषि की दृष्टि से यह मिट्टी सबसे अधिक उपजाऊ तथा महत्त्वपूर्ण है। इस मिट्टी पर भारत की लगभग आधी आबादी की जीविका निर्भर है।
जलोढ़ मिट्रियों को नवीनता एवं प्राचीनता के आधार पर दो भागों में विभक्त किया जाता है – (1) बांगर (2) खादर
- बांगर – यह पुराना जलोढ़ मिट्टी है जो अपेक्षाकृत ऊँचे भावों में पाया जाता है। इन मिट्टियों तक बाढ़ का पानी नहीं पाता है। यह खादर की अपेक्षा कम उपजाऊ मिट्टी होती है।
- खादर – नवीन जलोढ मिट्रियाँ हैं जो नदी के बाढ मैदान, दियारा तथा डेल्टा क्षेत्रों में पायी जाती है। इसके कण प्राय: महीन होते हैं और इनमें जल धारण की शक्ति बांगूर मिट्टी से अधिक होती है तथा बांगर से इसकी उपजाऊपन ज्यादा है।
प्रश्न 5.
भारत की मिट्टियों का वर्गीकरण कीजिए तथा उनकी विशेषताएँ एवं वितरण का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत की मिट्टियों की उत्पत्ति, रंग, संघटन और स्थिति के आधार पर भारतीय मृदाओं को निम्नलिखित आठ वर्गों में विभाजित किया गया है –
- जलोढ़ मृदा
- काली मिट्टी
- लाल एवं पीली मिट्टी
- लैटेराइट मिट्टी
- मरुस्थलीय मिट्टी
- क्षारीय मिट्टी
- पीटमय और जैव मृदायें तथा
- वन मृदायें।
1. जलोढ़ मृदा – यह सर्वाधिक उपजाऊ मिट्टी हैं, जिनमें अनेक फसलें उपजायी जाती हैं। इसका मिट्टी का वितरण गंगा के संपूर्ण मैदानी भागों में पायी जाती है। प्रायद्वीपीय भारत में ये पूर्वी तट के नदियों के डेल्टाओं और कुछ नहीं घाटियों में पायी जाती है। इस मिट्टी का विस्तार भारत के 22% क्षेत्रफल पर पायी जाती है।
2. काली मिट्टी – इसे कपासी मिट्टी भी कहा जाता है। काली मिट्टी देश के कुल क्षेत्रफल के 30% मात्रा पर पाई जाती है। इन्हें रेगुड़ भी कहते हैं। काली मिट्टी महाराष्ट्र पश्चिमी मध्यप्रदेश, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, गुजरात और तमिलनाडु में विकसित है।
3. लाल एवं पिली मिट्टी – यह मिट्टी अपेक्षाकृत बलई और लाल-पीले रंग ही होती है। महीन कणों वाली मृदायें सामान्यतः उपजाऊ होती हैं। तमिलनाडु, कर्नाटक आंध्रप्रदेश और उड़ीसा के अधिकांश भूमि पर लाल बलुई मृदायें पायी जाती हैं।
4. लैटेराइट मिट्टी – उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में लैटेराइट मिट्टी पायी जाती है जहाँ ऋतुनिष्ठ भारी वर्षा होती है। यह फसलों की कृषि हेतु उपजाऊ मिट्टी है। तमिलनाडु, कर्नाटक, के रण्य, मध्यप्रदेश, उड़ीसा और असम के पहाड़ी क्षेत्रों में हुआ है।
5. मरुस्थलीय मृदायें – इस मिट्टी का रंग लाल से लेकर किशमिशी तक होता है। यह सामान्यतः बलुई एवं क्षारीय होती है। पश्चिमी राजस्थान में मरुस्थलीय मृदायें विशेष रूप में विकसित हुई हैं।
6. वन मृदाएँ – यह मिट्टी प्रर्याप्त वर्षा वाले वन क्षेत्रों में निर्मित होती हैं। मृदाओं का निर्माण पर्वतीय वातावरण में होती हैं। निचली घाटियों में पायी जाने वाली मृदायें उपजाऊ होती हैं और इनमें प्रायः चावल एवं गेहूँ की खेती होती है।
प्रश्न 6.
भारत में काली मिट्टी का क्षेत्र एवं उसकी विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
काली मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी लावा के अनावृत्तिकरण से होती है। महाराष्ट्र एवं गुजरात के अधिकांश भाग, पश्चिमी मध्य प्रदेश तथा आंध्रप्रदेश कर्नाटक और तमिलनाडु के कुछ भागों में मिलती हैं। इस मिट्टी का विस्तार 5.5 लाख वर्ग किमी. में भारत में है। इसका विस्तार लावा क्षेत्र तक ही नहीं बल्कि नदियों ने इसे ले जाकर अपनी घाटियों में भी जमा करते रहते हैं। काली मिट्टी को विशेषता-यह मिट्टी बहुत ही उपजाऊ है। कपास की उपज हेतु तो यह मिट्टी विश्वविख्यात इतनी हुई कि इसे कपासी मिट्टी भी कहा जाने लगा। इस मिट्टी में नमी रखने की शक्ति प्रचूर मात्रा में है। यद्यपि इस क्षेत्र में वर्षा कम होती है फिर भी इस मिट्टी से कपास के पौधों को पर्याप्त नमी प्राप्त हो जाती है और सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती।