श्रमिक विधान का विकास
19वीं शताब्दी में यूरोप में हुये औद्योगीकरण के परिप्रेक्ष्य में, भारत में इस अवधि में विभिन्न कारखानों एवं बागानों में कार्य की दशायें अत्यंत दयनीय थीं। कार्य के घंटे काफी-लंबे थे तथा पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं एवं बच्चों को भी काफी लंबे समय तक काम करना पड़ता था। इन मजदूरों का वेतन भी काफी कम […]