सर्वोच्च न्यायालय ने 8 अप्रैल, 2009 को अपने एक फैसले में निर्णय दिया कि अधिकारी स्तर के पदों को भरने में होने वाली प्रारंभिक परीक्षा में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को आरक्षण प्रदान करने की सरकार की संवैधानिक बाध्यता नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने भर्ती प्रक्रिया को धर्मार्थ कार्य से अलग किया और कहा कि पदों की भर्ती योग्यता एवं कौशलता के आधार पर होनी चाहिए ताकि देश की सेवा सही अर्थों में हो सके। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णय आंध्र प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा में पदों की नियुक्ति में प्रारंभिक परीक्षा स्तर पर आरक्षण देने से मना कर दिया था जिसके खिलाफ परीक्षा के आरक्षित कोटे के अभ्यर्थियों ने न्यायालय में याचिका दायर की थी।
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