नागेन्द्र सकलानी टिहरी राज्य क्रांति के मुख्य सूत्रधारों में से एक थे जिनका उदेश्य रियासत टिहरी गढ़वाल को भारत संघ में विलय करवाना था। 11 जनवरी 1948 को इनकी हत्या रियासत टिहरी की शाही फौज के एक अधिकारी कर्नल डोभाल के द्वारा कीर्तिनगर में कर दी गयी थी।Nagendra Saklani TS
नागेन्द्र सकलानी का जन्म वर्ष 16 नवम्बर, 1920 को रियासत टिहरी के अंतर्गत सकलाना जागीर के पुजार गाँव में हुआ था. वे वृक्ष मानव के नाम से विख्यात विश्वेश्वर दत्त सकलानी के बड़े भाई थे. नागेन्द्र सकलानी ने देहरादून से कक्षा 10 की शिक्षा उत्तीर्ण की थी. विद्यार्थी जीवन के दौरान वे देश मं चल रहे स्वतंत्रता संग्राम के बारे में जागरूक हुए. कालांतर में वे टिहरी प्रजा मंडल के सदस्य बन कर रियासत टिहरी के आन्दोलनों में शामिल हो गए. इसी दौरान नागेन्द्र सकलानी वामपंथी विचारधारा के संपर्क में आये और उन्होंने देहरादून में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन सचिव आनंद स्वरुप भारद्वाज की मार्क्सवाद की कक्षाओं में भाग लेना शुरू किया. कम्युनिस्ट नेता ब्रिजेन्द्र गुप्ता के साथ मिलकर कामरेड नागेन्द्र सकलानी ने टिहरी रियासत के भीतर चल रहे प्रजा मंडल आन्दोलन में हस्तक्षेप करते हुए उसे मुक्ति के संघर्ष से जोड़ा. प्रजा मंडल का एक गुट विशेष टिहरी नरेश की छत्रछाया में उत्तरदायी शासन का पक्षधर था. प्रजा मंडल की रियासत के भीतर चल रहे किसान अन्दोलनों के प्रति उदासीनता ही रही. नागेन्द्र सकलानी किसान आन्दोलन को सहायता देने के पक्षधर रहे. प्रजा मंडल द्वारा कड़ाकोट तथा सकलाना में चल रहे किसान आन्दोलन को कम्युनिस्ट कार्यवाही बताते हुए इनकी भर्त्सना की गयी तथा नागेन्द्र सकलानी की प्रजा मंडल की सदस्यता समाप्त कर दी गयी. किन्तु प्रजा मंडल के अनेक युवा नेता नागेन्द्र सकलानी के साथ किसान आन्दोलन से जुड़े रहे।Last letter of Nagendra Saklani from Kirti Nagar. Courtesy Sachhidanand Painuli
10 जनवरी 1948 को नागेन्द्र सकलानी ने प्रजामंडल के युवा नेता त्रेपन सिंह नेगी, खिमानन्द गोदियाल, किसान नेता दादा दौलत राम, कांग्रेसी कार्यकर्त्ता त्रिलोकीनाथ पुरवार, कम्युनिस्ट कार्यकर्त्ता देवी दत्त तिवारी के सामूहिक नेतृत्व में सैकड़ों ग्रामीणों के साथ कीर्तिनगर के न्यायलय तथा अन्य सरकारी भवनों को घेर कर रियासत की फौज तथा प्रशासन से आत्मसमर्पण करवा दिया. कीर्तिनगर को आजाद घोषित करते हुए कीर्तिनगर आजाद पंचायत की घोषणा कर दी गयी. 11 जनवरी 1948 को जब आन्दोलनकारी राजधानी टिहरी कूच की तयारी कर रहे थे तब रियासत की नरेन्द्र नगर से भेजी गयी फौज ने कीर्तिनगर पर पुन: कब्ज़ा करने का प्रयास किया. कीर्तिनगर आजाद पंचायत की रक्षा के संघर्ष में कामरेड नागेन्द्र सकलानी और मोलूराम भरदारी, शाही फौज के एक अधिकारी कर्नल डोभाल की गोलियों का शिकार बन गए. 12 जनवरी 1948 की सुबह पेशावर कांड के नायक चन्द्र सिंह गढ़वाली कोटद्वार से कीर्तिनगर पहुँच गए. उनके सुझाव पर शहीद नागेन्द्र सकलानी और मोलू भरदारी की अर्थियों को आन्दोलनकारी उठा कर टिहरी की दिशा में चल पड़े.
यह शव यात्रा देवप्रयाग, हिंडोलाखाल, नन्द गाँव- बडकोट होते हुए तीसरे दिवस 14 जनवरी को रियासत की राजधानी टिहरी पहुंची. जहाँ उनका दाह संस्कार भिलंगना और भागीरथी के संगम पर हुआ. जनता के आक्रोश से भयभीत शाही फौज ने उसी दिन आत्मसमर्पण कर दिया और आजाद पंचायत सरकार की स्थापना हो गयी. 1 अगस्त 1949 को रियासत टिहरी का भारत संघ में वैधानिक विलय हो गया.