गुप्त साम्राज्य 320 CE–550 CE |
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श्री गुप्त(240 – 280)घटोत्कच(280 – 319)चन्द्रगुप्त प्रथम(320 – 335)समुद्रगुप्त(335 – 380)रामगुप्तचन्द्रगुप्त द्वितीय(380 – 413/415)कुमारगुप्त प्रथम(415 – 455)स्कन्दगुप्त(455 – 467)पुरुगुप्त(467 – 473)कुमारगुप्त द्वितीय(473 – 476)बुद्धगुप्त(476 – 495)नरसिंहगुप्त(495 – ?)कुमारगुप्त तृतीयविष्णुगुप्त(540 – 550)वैन्यगुप्त(550 – ?)भानुगुप्त |
देवासं |
चंद्रगुप्त प्रथम गुप्त वंश के तृतीय किंतु प्रथम स्वतंत्र एवं शक्तिशाली नरेश। साधरणतया विद्वान् उनके राज्यारोहण की तिथि 319-320 ई. निश्चित करते हैं। कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि उन्होंने उसी तिथि से आरंभ होनेवाले गुप्त संवत् की स्थापना भी की थी।
गुप्तों का आधिपतय आरंभ में दक्षिण बिहार तथा उत्तर-पश्चिम बंगाल पर था। प्रथम चंद्रगुप्त ने साम्राज्य का विस्तार किया। वायुपुराण में प्रयाग तक के गंगा के तटवर्ती प्रदेश, साकेत तथा मगध को गुप्तों की ‘भोगभूमि’ कहा है। इस उल्लेख के आधार पर विद्वान् चंद्रगुप्त प्रथम की राज्यसीमा का निर्धारण करते हैं, यद्यपि इस बात का कोई पुष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है। चंद्रगुप्त प्रथम ने लिच्छवि कुमारदेवी से विवाह किया था। संभव है, साम्राज्यनिर्माण में चंद्रगुप्त प्रथम को लिच्छवियों से पर्याप्त सहायता मिली हो। यह भी संभव है कि लिच्छवि राज्य मिथिला इस विवाह के फलस्वरूप चंद्रगुप्त के शासन के अंतर्गत आ गया हो। ‘कौमुदी महोत्सव’ आदि से ज्ञात एवं उनपर आधृत, चंद्रगुप्त प्रथम के राज्यारोहण आदि से संबद्ध इतिहास निर्धारण सर्वथा असंगत है। उन्होंने संभवतः एक प्रकार की स्वर्णमुद्रा का प्रचलन किया, एवं महाराजाधिराज का विरुद धारण किया। प्रयाग प्रशस्ति के आधार पर कह सकते हैं कि चंद्रगुप्त प्रथम ने समुद्रगुप्त को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और संभवतः 380 ई. के लगभग उनके सुदीर्घ शासन का अंत हुआ।
सन्द्रभ ग्रन्थ
- हेमचंद्र रायचौधरी : पोलिटिकल हिस्ट्री ऑव इंडिया, पृष्ठ 530-32, षष्ठ संस्करण, कलकत्ता, 1953;
- राधकुमुद मुखर्जी : द गुप्त एंपायर पृ. 13-16, बंबई, 1959;
- द कलासिकल एज, पृ. 3-6, बंबई 1962;
- द गुप्त-वोकाटक एज;
- सुधाकर चट्टोपाध्याय : द अर्ली हिस्ट्री ऑव नार्थ इंडिया, पृ. 140-46 कलकत्ता, 1958;
- वासुदेव उपाध्याय : गुप्त साम्राज्य का इतिहास, भाग 1, पृ. 32-35, इलाहाबाद, 1957।